****उठाने हैं अभी दरिया से मुझको प्यास के पहरे**** ****अभी तो खुश्क पैरों पे मुझे रिमझिम भी लिखनी है**** मेरे दामन को वुसअत दी है तूने दश्त-ओ-दरिया की मैं ख़ुश हूँ देने वाले, तू मुझे कतरा के राई दे**** **** अक्स पानी में मोहब्बत के उतारे होते, हम जो बैठे हुए दरिया के किनारे होते****